शब्द बहुत छोटा है स्वप्न। भौतिक और जगत के अध्यात्म का समन्वय ही स्वप्न है। भौतिक अर्थात जो कुछ आंखों से दिख रहा है, इंद्रियां जिसे अनुभव कर रही हैं और दूसरा आध्यात्मिक अर्थात जो हमें खुली आंखों और स्पर्श से नहीं अनुभूत हो रहा। ये दोनों अवस्थाएं जीवन के दो पहलू हैं। दोनों सत्य है। एक बार एक लकड़हारा रात में सोते समय सपने देखने लगा कि वह बहुत अमीर हो गया है। नींद खुलने पर बहुत प्रसन्न हुआ। उसकी पत्नी रूखा सूखा भोजन देने आई तो वह बोला कि अब हम अमीर हैं, ऐसा खाना नहीं खाता हूं। पत्नी समझ गई कि उसका पति कोई निकृष्ट स्वप्न देख कर जगा है। शाम तक उसने उसे कुछ नहीं दिया जब लकड़हारा भूख से व्याकुल हुआ तो उसे सपने के सत्य-असत्य का ज्ञान हुआ और पुनः वह अपनी वास्तविक स्थिति पर लौट आया। अब प्रश्न यह उठता है कि स्वप्न, सत्य-असत्य कैसे है? कुछ क्षण के लिए सत्य का भान कराता है बाद में असत्य हो जाता है, कभी सत्य हो जाता है।
ऋषि, महर्षि, आचार्यों ने इस भूमि पर रह कर संसार को असत्य अर्थात स्वप्निल कहा है, स्वप्न के समान। गृहस्थ भी समाज देश में रह कर अपना स्थान मात्र स्मारक, फोटो फ्रेम तक सीमित मान लें, तो यह आध्यात्मिक सत्य है। ईश्वर को देखा नहीं गया है, लेकिन विश्व का हर देश, समाज, संप्रदाय किसी न किसी रूप में इसे स्वीकारता है। अतः यह पूर्ण सत्य है। जगत का सत्य अर्थात स्वप्निल संसार से सपनों का अर्थ निकालने में इसे ÷भ्रम' कहा जा सकता है। ÷भ्रम' इस अर्थ में कि अभी इस पर बहुत कुछ आधुनिक विज्ञान से पाने की संभावना बनती है।
हर मनुष्य की दो अवस्थाएं होती हैं, पहला जाग्रत या अनिंद्रित, दूसरी पूर्ण निंद्रा में अर्थात सुषुप्त। इसमें पुनः दो बार संधि काल आता है पहला जब सोने जाते हैं -पूर्ण निंद्रा में जाने से पहले और दूसरा, सोकर उठने से कुछ काल पहले का समय होता है। जाग्रत और पूर्ण निद्रावस्था के बीच के समय प्रायः स्वप्न आते हैं। एक विचार से नींद में दिखने वाला सब कुछ असत्य होता है, तो दूसरी विचारधारा में स्वप्न, पूर्व का घटित सत्य होता है। आगे इस पर विचार करेंगे कि प्रायः दिखने वाले स्वप्नों के क्या कारण हो सकते हैं ? भौतिक शरीर नहीं रहने पर, मन बुद्धि और मस्तिष्क के विचारों का, क्या शव के साथ दहन-दफन हो जाता है? कदापि किसी भी उर्जा का क्षय नहीं होता, रूपांतरण होता है। यह सर्वसत्य तथा वैज्ञानिक, मनीषियों की विवेचना है। जन्म-जन्मांतर में ये संस्कारिक रूप में आते हैं। वैसे सुषुप्त अवस्था में, मन बुद्धि और मस्तिष्क का ज्ञान भंडारपूर्ण सुषुप्त नहीं होता। निद्रा देवी अर्थात नींद कैसे आती है और कहां चली जाती है। इसे कौन नियंत्रित करता है ? वह ÷मन' है। शांत भाव से सोचते हैं कि सोना है और धीरे धीरे सो जाते हैं। अगर मन में यह बात बैठी है कि प्रातःकाल अमुक समय उठना है तो नींद गायब भी, समय पर हो जाती है। जैसे बंद मोबाइल, कंप्यूटर जब भी चालू करेंगे, वह समय ठीक ही बताएगा। अर्थात उसमें कुछ बंद अवस्था में भी चल रहा है। मानव शरीर एक विलक्षण यंत्र है इसमें वैदिक ज्ञान से लेकर अकल्पनीय कार्य क्षमता का समावेश है। भगवान की इस रचना के लिए श्रीगीता का एक श्लोक है - न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः॥
श्रीगीता के इस श्लोक का यह भाव है कि सुषुप्त अवस्था में भी मन द्वारा मस्तिष्क के संचित ज्ञान भंडार से कुछ न कुछ कार्य होता रहता है। सुषुप्त अवस्था में भी क्षण मात्र को कोई भी प्राकृतिक गुण-धर्म से अलग नहीं होता। प्रथम प्रकृति ही ईश्वर है। वह सदा साथ रहता है, मानव शरीर से शीर्ष पर, अर्थात सबसे ऊपर जो हमारा मस्तिष्क है। दिमाग की थोड़ी सी चूक उसे प्रगति से दूर्गति तक पहुंचा देती है। मस्तिष्क का संचालक ÷मन' है, हमारी सोच है। कल्याणकारी सोच अच्छे सपनों को जन्म देती है, निकृष्ट सोच सदा बुरे सपनों को संजोता है। मनोवैज्ञानिक भी यही कहते हैं कि स्वप्न मन की उपज है।
मनुष्य मस्तिष्क में असंख्य तंतुओं का जाल या संग्रहालय है। जागृत अवस्था में मन से उसे संचालन करते हैं फिर भी बहुत से मस्तिष्क रूपी कंप्यूटर खोलने और बंद करने में दिन भर की बाधाएं आती रहती हैं। मस्तिष्क की व्यवस्था जब विधिवत् बंद नहीं होती तो दिमाग बोझिल होकर निंद्रा में, कार्य करने पर स्वप्नों का निर्माण करता है। जब जगते हैं तो उनका अपुष्ट स्वरूप ध्यान आता है, फिर विचार करते हैं कि यह शुभ फल देगा या अशुभ। स्वप्न का अर्थ हमेशा निरर्थक नहीं होता, क्योंकि पूर्वजन्म की मनोदशा और ज्ञान संस्कार पुनः आगे के जन्मों में परिलक्षित होते हैं। बाह्य चेतना जन्य बोध, वर्तमान चेतना के बोध को भले ही अस्वीकार करे, लेकिन सच्चा ज्ञान एवं घटित कार्य कलाप अंतरात्मा में निहित होते हैं। मन से मस्तिष्क के ज्ञान का उदय, दिवा या रात्रि स्वप्न होते हैं।
बार-बार एक ही तरह के स्वप्न को देखने वाले कई लोग एक ही प्रकार की उपलब्धि पाते हैं तो स्वप्न विचारक मनीषी इसे तालिका के रूप में प्रस्तुत करते हैं। बहुत ही प्राचीन काल से यह धारणा चली आ रही है और प्रायः यह सत्य के करीब है। स्वर्ण, आभूषण, रत्न आदि की प्राप्ति का स्वप्न, आने वाले समय में इसका क्षय दर्शाते हैं। वैसे ही मल मूत्र और अशुद्धियों से युक्त वातावरण के सपने से सम्मान पाना तथा शुभ वातावरण में समय व्यतीत होना लिखा है। लेकिन मरे हुए पशु और सूखे ताल का दृश्य इसका विपरीत बोध नहीं कराता, बल्कि आने वाले समय में विभिषीका को दर्शाता है। स्वप्न में सूर्य, चंद्र, मंदिर और भगवान स्वरूपों के दर्शन अति शुभ लिखे गए हैं। ऐसी तालिकाएं प्रायः पंचांगों में विद्वान ज्योतिषाचार्यों ने दे रखी हैं। ज्योतिषीय विवेचना में चंद्र को मन का कारक कहा गया है। अतः मन ही सपनों का जनक कहा जा सकता है। जिस जातक के लग्न में कमजोर ग्रह, दूषित चंद्र या दृष्टिगत शत्रु ग्रह होते हैं, वे जातक आसन के कमजोर माने जाते हैं। ऐसे लोगों को स्वप्न ज्यादा दिखते हैं तथा नजर दोष, डर, भय के ज्यादा शिकार होते हैं। मनोवैज्ञानिक भी इसके उपचार में यथासाध्य दिमागी रोग का इलाज करते हैं। ज्योतिष संभावनाओं और पूर्व सूचनाओं का संपूर्ण विज्ञान है। दिवा स्वप्न हो या रात्रि स्वप्न, डरावने सपने हों या निरर्थक स्वप्न, इन सबों से छूटकारा पाने का एक मंत्र, जो प्रख्यात आचार्यों द्वारा प्रतिपादित है यहां दिया जा रहा है -
मंगलम् भगवान विष्णु मंगलम् गरुड़ोध्वजः।
मंगलम् पुण्डरीकाक्ष मंगलायस्तनोहरिः।
यः स्मरेत् पुण्डिरीकाक्षं सः बाह्याभ्यन्तरः शुचिः'॥
बुरे सपनों को दूर करने हेतु जातक या उसके माता पिता को श्रद्धा से पूजा-पाठ के समय इसका जप करना चाहिए। नियमित रूप से इष्ट/गुरु के सम्मुख इस मंत्र की प्रार्थना का प्रभाव देखा जा सकता है। कुछ ही दिनों में भय उत्पन्न करने वाले एवं निकृष्ट सपनों का निश्चित परिमार्जन होता देखा गया है। साथ ही साथ आनेवाले समय में देवी-देवताओं की आकृतियों का आभास होने लगता है। आंखें बंद कर पूजा करने वाले भी देवताओं की आकृति का स्मरण करते हैं, वैसे ही स्वप्नों में भी इनकी आकृति अतिशुभ है। जीवन के होते हुए भी मृत्यु सत्य है, वैसे ही जगत के स्वप्निल होते हुए भी स्वप्न का अस्तित्व है, चाहे वे इस जीवन के हों या जन्म जन्मांतरण के। अंतरात्मा का ज्ञान एक मूर्त सत्य है, यह पूर्ण श्रद्धा उदित करती है और यही इसका आधार है।
Note-यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है वह मेरी अपनी नहीं है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें।मैं हर इंसान के लिए ज्योतिष के ज्ञान के प्रसार के बारे में सोच कर इस ब्लॉग को बनाए रख रहा हूँ। DISCLAIMER This Blog is created to provide you the Tips & Tricks, Best General Tips & Knowledge, Religious Content in Hindi. The Articles in this blog are collected from various Newspapers, TV Channels and other sources and does not warrant or assume any legal liability or responsibility for the accuracy, completeness or usefulness of the information provided here.I am maintaining this blog with the thought of spreading the knowledge of Astrology to every human being Please check with a Vastu expert or an Astrologer before using any of the suggestions given in this Blog.To delete copyright contents if any please email us, we'll remove relevant contents immediately. ग्रह-तारे
ऋषि, महर्षि, आचार्यों ने इस भूमि पर रह कर संसार को असत्य अर्थात स्वप्निल कहा है, स्वप्न के समान। गृहस्थ भी समाज देश में रह कर अपना स्थान मात्र स्मारक, फोटो फ्रेम तक सीमित मान लें, तो यह आध्यात्मिक सत्य है। ईश्वर को देखा नहीं गया है, लेकिन विश्व का हर देश, समाज, संप्रदाय किसी न किसी रूप में इसे स्वीकारता है। अतः यह पूर्ण सत्य है। जगत का सत्य अर्थात स्वप्निल संसार से सपनों का अर्थ निकालने में इसे ÷भ्रम' कहा जा सकता है। ÷भ्रम' इस अर्थ में कि अभी इस पर बहुत कुछ आधुनिक विज्ञान से पाने की संभावना बनती है।
हर मनुष्य की दो अवस्थाएं होती हैं, पहला जाग्रत या अनिंद्रित, दूसरी पूर्ण निंद्रा में अर्थात सुषुप्त। इसमें पुनः दो बार संधि काल आता है पहला जब सोने जाते हैं -पूर्ण निंद्रा में जाने से पहले और दूसरा, सोकर उठने से कुछ काल पहले का समय होता है। जाग्रत और पूर्ण निद्रावस्था के बीच के समय प्रायः स्वप्न आते हैं। एक विचार से नींद में दिखने वाला सब कुछ असत्य होता है, तो दूसरी विचारधारा में स्वप्न, पूर्व का घटित सत्य होता है। आगे इस पर विचार करेंगे कि प्रायः दिखने वाले स्वप्नों के क्या कारण हो सकते हैं ? भौतिक शरीर नहीं रहने पर, मन बुद्धि और मस्तिष्क के विचारों का, क्या शव के साथ दहन-दफन हो जाता है? कदापि किसी भी उर्जा का क्षय नहीं होता, रूपांतरण होता है। यह सर्वसत्य तथा वैज्ञानिक, मनीषियों की विवेचना है। जन्म-जन्मांतर में ये संस्कारिक रूप में आते हैं। वैसे सुषुप्त अवस्था में, मन बुद्धि और मस्तिष्क का ज्ञान भंडारपूर्ण सुषुप्त नहीं होता। निद्रा देवी अर्थात नींद कैसे आती है और कहां चली जाती है। इसे कौन नियंत्रित करता है ? वह ÷मन' है। शांत भाव से सोचते हैं कि सोना है और धीरे धीरे सो जाते हैं। अगर मन में यह बात बैठी है कि प्रातःकाल अमुक समय उठना है तो नींद गायब भी, समय पर हो जाती है। जैसे बंद मोबाइल, कंप्यूटर जब भी चालू करेंगे, वह समय ठीक ही बताएगा। अर्थात उसमें कुछ बंद अवस्था में भी चल रहा है। मानव शरीर एक विलक्षण यंत्र है इसमें वैदिक ज्ञान से लेकर अकल्पनीय कार्य क्षमता का समावेश है। भगवान की इस रचना के लिए श्रीगीता का एक श्लोक है - न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः॥
श्रीगीता के इस श्लोक का यह भाव है कि सुषुप्त अवस्था में भी मन द्वारा मस्तिष्क के संचित ज्ञान भंडार से कुछ न कुछ कार्य होता रहता है। सुषुप्त अवस्था में भी क्षण मात्र को कोई भी प्राकृतिक गुण-धर्म से अलग नहीं होता। प्रथम प्रकृति ही ईश्वर है। वह सदा साथ रहता है, मानव शरीर से शीर्ष पर, अर्थात सबसे ऊपर जो हमारा मस्तिष्क है। दिमाग की थोड़ी सी चूक उसे प्रगति से दूर्गति तक पहुंचा देती है। मस्तिष्क का संचालक ÷मन' है, हमारी सोच है। कल्याणकारी सोच अच्छे सपनों को जन्म देती है, निकृष्ट सोच सदा बुरे सपनों को संजोता है। मनोवैज्ञानिक भी यही कहते हैं कि स्वप्न मन की उपज है।
मनुष्य मस्तिष्क में असंख्य तंतुओं का जाल या संग्रहालय है। जागृत अवस्था में मन से उसे संचालन करते हैं फिर भी बहुत से मस्तिष्क रूपी कंप्यूटर खोलने और बंद करने में दिन भर की बाधाएं आती रहती हैं। मस्तिष्क की व्यवस्था जब विधिवत् बंद नहीं होती तो दिमाग बोझिल होकर निंद्रा में, कार्य करने पर स्वप्नों का निर्माण करता है। जब जगते हैं तो उनका अपुष्ट स्वरूप ध्यान आता है, फिर विचार करते हैं कि यह शुभ फल देगा या अशुभ। स्वप्न का अर्थ हमेशा निरर्थक नहीं होता, क्योंकि पूर्वजन्म की मनोदशा और ज्ञान संस्कार पुनः आगे के जन्मों में परिलक्षित होते हैं। बाह्य चेतना जन्य बोध, वर्तमान चेतना के बोध को भले ही अस्वीकार करे, लेकिन सच्चा ज्ञान एवं घटित कार्य कलाप अंतरात्मा में निहित होते हैं। मन से मस्तिष्क के ज्ञान का उदय, दिवा या रात्रि स्वप्न होते हैं।
बार-बार एक ही तरह के स्वप्न को देखने वाले कई लोग एक ही प्रकार की उपलब्धि पाते हैं तो स्वप्न विचारक मनीषी इसे तालिका के रूप में प्रस्तुत करते हैं। बहुत ही प्राचीन काल से यह धारणा चली आ रही है और प्रायः यह सत्य के करीब है। स्वर्ण, आभूषण, रत्न आदि की प्राप्ति का स्वप्न, आने वाले समय में इसका क्षय दर्शाते हैं। वैसे ही मल मूत्र और अशुद्धियों से युक्त वातावरण के सपने से सम्मान पाना तथा शुभ वातावरण में समय व्यतीत होना लिखा है। लेकिन मरे हुए पशु और सूखे ताल का दृश्य इसका विपरीत बोध नहीं कराता, बल्कि आने वाले समय में विभिषीका को दर्शाता है। स्वप्न में सूर्य, चंद्र, मंदिर और भगवान स्वरूपों के दर्शन अति शुभ लिखे गए हैं। ऐसी तालिकाएं प्रायः पंचांगों में विद्वान ज्योतिषाचार्यों ने दे रखी हैं। ज्योतिषीय विवेचना में चंद्र को मन का कारक कहा गया है। अतः मन ही सपनों का जनक कहा जा सकता है। जिस जातक के लग्न में कमजोर ग्रह, दूषित चंद्र या दृष्टिगत शत्रु ग्रह होते हैं, वे जातक आसन के कमजोर माने जाते हैं। ऐसे लोगों को स्वप्न ज्यादा दिखते हैं तथा नजर दोष, डर, भय के ज्यादा शिकार होते हैं। मनोवैज्ञानिक भी इसके उपचार में यथासाध्य दिमागी रोग का इलाज करते हैं। ज्योतिष संभावनाओं और पूर्व सूचनाओं का संपूर्ण विज्ञान है। दिवा स्वप्न हो या रात्रि स्वप्न, डरावने सपने हों या निरर्थक स्वप्न, इन सबों से छूटकारा पाने का एक मंत्र, जो प्रख्यात आचार्यों द्वारा प्रतिपादित है यहां दिया जा रहा है -
मंगलम् भगवान विष्णु मंगलम् गरुड़ोध्वजः।
मंगलम् पुण्डरीकाक्ष मंगलायस्तनोहरिः।
यः स्मरेत् पुण्डिरीकाक्षं सः बाह्याभ्यन्तरः शुचिः'॥
बुरे सपनों को दूर करने हेतु जातक या उसके माता पिता को श्रद्धा से पूजा-पाठ के समय इसका जप करना चाहिए। नियमित रूप से इष्ट/गुरु के सम्मुख इस मंत्र की प्रार्थना का प्रभाव देखा जा सकता है। कुछ ही दिनों में भय उत्पन्न करने वाले एवं निकृष्ट सपनों का निश्चित परिमार्जन होता देखा गया है। साथ ही साथ आनेवाले समय में देवी-देवताओं की आकृतियों का आभास होने लगता है। आंखें बंद कर पूजा करने वाले भी देवताओं की आकृति का स्मरण करते हैं, वैसे ही स्वप्नों में भी इनकी आकृति अतिशुभ है। जीवन के होते हुए भी मृत्यु सत्य है, वैसे ही जगत के स्वप्निल होते हुए भी स्वप्न का अस्तित्व है, चाहे वे इस जीवन के हों या जन्म जन्मांतरण के। अंतरात्मा का ज्ञान एक मूर्त सत्य है, यह पूर्ण श्रद्धा उदित करती है और यही इसका आधार है।
Note-यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है वह मेरी अपनी नहीं है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें।मैं हर इंसान के लिए ज्योतिष के ज्ञान के प्रसार के बारे में सोच कर इस ब्लॉग को बनाए रख रहा हूँ। DISCLAIMER This Blog is created to provide you the Tips & Tricks, Best General Tips & Knowledge, Religious Content in Hindi. The Articles in this blog are collected from various Newspapers, TV Channels and other sources and does not warrant or assume any legal liability or responsibility for the accuracy, completeness or usefulness of the information provided here.I am maintaining this blog with the thought of spreading the knowledge of Astrology to every human being Please check with a Vastu expert or an Astrologer before using any of the suggestions given in this Blog.To delete copyright contents if any please email us, we'll remove relevant contents immediately. ग्रह-तारे
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